'बच्चे काम पर जा रहे हैं' (पाठ - 17 विषय - हिन्दी काव्य-खण्ड कक्षा- 9) सारांश, भावार्थ एवं प्रश्नोत्तर || 9th hindi 'bachche kaam par ja rahe hain'
पाठ का भाव (सारांश)
'बच्चे काम पर जा रहे हैं' कविता में बचपन के प्रति गहरी संवेदना व्यक्त है। प्रातः काल चारों ओर भयंकर कोहरा छाया है फिर भी बच्चे काम पर जा रहे हैं। आज की इस स्थिति का उल्लेख भयानक विवरण की तरहन करके प्रश्न के रूप में किया जाना चाहिए। प्रश्न यह है कि खेलने की सभी गेंदे, सभी खिलौने कहाँ दब गए, नष्ट हो गए हैं। समस्त किताबों को दीमक चाट गई अथवा सभी विद्यालयों के भवन किसी भूकम्प में दब गए हैं। क्या बच्चों के खेलने के बाग-बगीचे या सभी मैदान समाप्त हो गए हैं। यदि ऐसा है तो दुनिया में कुछ ही नहीं है। वास्तविकता यह है कि सभी चीजें ज्यों की त्यों हैं किन्तु बच्चे काम पर जा रहे हैं।
लेखक परिचय-
राजेश जोशी
राजेश जोशी का जन्म सन् 1946 में मध्य प्रदेश के नरसिंहगढ़ जिले में हुआ। उन्होंने शिक्षा पूरी करने के बाद पत्रकारिता शुरू की और कुछ सालों तक अध्यापन किया। राजेश जोशी ने कविताओं के अलावा कहानियाँ, नाटक, लेख और टिप्पणियाँ भी लिखीं। साथ ही उन्होंने कुछ नाट्य रूपांतर भी किए हैं। कुछ लघु फिल्मों के लिए पटकथा लेखन का कार्य भी किया। उन्होंने भर्तृहरि की कविताओं की अनुरचना भूमि का कल्पतरू यह भी एवं मायकोवस्की की कविता का अनुवाद पतलून पहिना बादल नाम से किया है। कई भारतीय भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, रूसी और जर्मन में भी राजेश जी की कविताओं के अनुवाद प्रकाशित हुए हैं।
राजेश जोशी के प्रमुख काव्य-संग्रह हैं-एक दिन बोलेंगे पेड़, मिट्टी का चेहरा, नेपथ्य में हँसी और दो पंक्तियों के बीच। उन्हें माखनलाल चतुर्वेदी पुरस्कार, मध्य प्रदेश शासन का शिखर सम्मान और सहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया है।
राजेश जोशी की कविताएँ गहरे सामाजिक अभिप्राय वाली होती हैं। वे जीवन के संकट में भी गहरी आस्था को उभारती हैं। उनकी कविताओं में स्थानीय बोली-बानी, मिजाज और मौसम सभी कुछ व्याप्त है। उनके काव्यलोक में आत्मीयता और लयात्मकता है तथा मनुष्यता को बचाए रखने का एक निरंतर संघर्ष भी। दुनिया के नष्ट होने का खतरा राजेश जोशी को जितना प्रबल दिखाई देता है, उतना ही वे जीवन की संभावनाओं की खोज के लिए बेचैन दिखाई देते हैं।
महत्वपूर्ण पद्यांशों की व्याख्या
पद्यांश (1) कोहरे से ढँकी सड़क पर बच्चे काम पर जा रहे हैं
सुबह-सुबह
बच्चे काम पर जा रहे हैं
हमारे समय की सबसे भयानक पंक्ति है यह
भयानक है इसे विवरण की तरह लिखा जाना
लिखा जाना चाहिए इसे सवाल की तरह
काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे?
संदर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'बच्चे काम पर जा रहे हैं' पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार राजेश जोशी हैं।
प्रसंग - यहाँ कोहरे से घिरी सड़क पर भी बच्चों के काम पर जाने की विवशता का वर्णन हुआ है।
व्याख्या - प्रातःकाल भयंकर कोहरा छाया है। धुंध के कारण सड़क भी साफ नहीं दिखाई दे रही है। ऐसी हालत में भी बच्चे फैक्ट्री, कारखानों आदि में काम करने चले जा रहे हैं। आज के समय की यह सबसे भयानक बात है। इस भयावह घटना को विवरण की तरह लिखना बहुत दुखद है। इसको तो एक ज्वलंत प्रश्न के रूप लिखा जाना चाहिए। प्रश्न यह है कि बच्चे काम पर क्यों जा रहे हैं। यह तो उनकी खेलने एवं पढ़ने की उम्र है, काम पर जाने की नहीं।
विशेष - (1) कवि ने पढ़ने-लिखने, खेलने की उम्र वाले बच्चों के काम पर जाने पर - प्रश्न खड़ा किया है।
(2) सामाजिक व्यवस्था पर करारा कटाक्ष किया गया है।
(3) सरल, सुबोध भाषा में विषय को प्रभावी ढंग से रखा गया है।
(4) वर्णों की आवृत्ति के कारण अनुप्रास अलंकार का सहज सौंदर्य दर्शनीय है।
पद्यांश (2) क्या अंतरिक्ष में गिर गई हैं सारी गेंदें
क्या दीमकों ने खा लिया है
सारी रंग बिरंगी किताबों को
क्या काले पहाड़ के नीचे दब गए हैं सारे खिलौने
क्या किसी भूकम्प में ढह गई हैं
सारे मदरसों की इमारतें।
क्या सारे मैदान, सारे बगीचे और घरों के आँगन
खत्म हो गए हैं एकाएक
तो फिर बचा ही क्या है इस दुनिया में?
संदर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'बच्चे काम पर जा रहे हैं' पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार राजेश जोशी हैं।
प्रसंग - यहाँ पर बच्चों की पढ़ने और खेलने की सुविधाओं के अभाव का प्रश्न उठाया है।
व्याख्या - बच्चे खेलने या पढ़ने न जाकर काम पर जा रहे हैं, इस पर प्रश्न उठाते हुए कवि कहते हैं कि बच्चों के खेलने की सभी गेंदे नक्षत्र लोक में गिर गई हैं? क्या बच्चों की पढ़ने वाली रंगीन किताबों को दीमक ने खाकर नष्ट कर दिया है? क्या बच्चों के खेलने के सभी खिलौने काले पर्वत के नीचे दबकर खत्म हो गए हैं? क्या बच्चों के पढ़ने के सभी विद्यालयों के भवन भूकम्प में ढहकर समाप्त हो गए हैं? जो बच्चे पढ़ने नहीं जा रहे हैं। क्या सभी खेलने के बाग-बगीचे, मैदान अथवा घर के आंगन अचानक समाप्त हो गए हैं? जो बच्चे खेलने न जाकर काम पर जा रहे हैं। यदि बच्चों के खेलने तथा पढ़ने की सभी सुविधाएँ समाप्त हो गई। हैं तो इस दुनिया में कुछ नहीं बचा है। यह दुनिया ही खत्म हो गई है।
विशेष - (1) इसमें प्रश्न उठाया गया है कि बच्चों की खेलने, पढ़ने की सभी सुविधाएँ - समाप्त हो गईं तो दुनिया ही समाप्त हो गई है।
(2) लाक्षणिक भाषा तथा सपाट शैली में विषय को रखा गया है।
(3) अनुप्रास अलंकार ।
पद्यांश (3) कितना भयानक होता अगर ऐसा होता
भयानक है लेकिन इससे भी ज्यादा यह
कि हैं सारी चीजें हस्बमामूल
पर दुनिया की हजारों सड़कों से गुजरते हुए
बच्चे, बहुत छोटे-छोटे बच्चे
काम पर जा रहे हैं।
संदर्भ - यह पद्यांश हमारी पाठ्य पुस्तक के 'बच्चे काम पर जा रहे हैं' पाठ से लिया गया है। इसके रचनाकार राजेश जोशी हैं।
प्रसंग - यहाँ बताया है कि बच्चों के पढ़ने, खेलने के सभी साधन हैं किन्तु फिर भी बच्चे काम पर जा रहे हैं।
व्याख्या - कवि कहता है कि यदि बच्चों के खेलने तथा पढ़ने के सभी साधन नष्ट हो जाते तो यह बहुत डरावनी घटना होती; किन्तु ऐसा कुछ भी नहीं हुआ, बच्चों के खेलने तथा पढ़ने के सभी साधन ज्यों के त्यों हैं, सभी चीजें यथावत् हैं। इन सभी साधनों के होते हुए भी संसार की हजारों सड़कों पर चलते हुए बहुत छोटे-छोटे बच्चे, जिनकी उम्र खेलने, खाने की है, वे भी कल-कारखानों में काम करने जा रहे हैं।
विशेष - (1) इसमें खेलने-खाने की छोटी उम्र के बच्चों के काम पर जाने पर घोर आपत्ति व्यक्त की गई है।
(2) सरल व्यावहारिक भाषा में कथन को प्रभावी ढंग से प्रस्तुत किया है।
(3) पुनरुक्तिप्रकाश, अनुप्रास अलंकार ।
प्रश्न अभ्यास-
प्रश्न 1. कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने पर आपके मन-मस्तिष्क में जो चित्र उभरता है, उसे लिखकर व्यक्त कीजिए ।
उत्तर - कविता की पहली दो पंक्तियों को पढ़ने तथा विचार करने पर मेरे मन में यह चित्र उभरता है - ठण्ड कड़ाके की पड़ रही है सड़क कोहरे से ढकी है। प्रातः काल की हाड़ कंपाने वाली शीत लहर है। इस तरह की ठण्ड में भी कंपकपाते हुए छोटे-छोटे बच्चे कारखानों में काम करने के लिए जल्दी कदम उठाते हुए चले जा रहे हैं। इनके हाथ में दोपहर के खाने का टिफिन है। आर्थिक तंगी के कारण यह सब हो रहा है। इस तंगी का कारण शोषण है। इन बच्चों का बचपन बरबाद हो रहा है।
प्रश्न 2. कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की भयानक बात को विवरण की तरह न लिखकर सवाल के रूप में पूछा जाना चाहिए कि 'काम पर क्यों जा रहे हैं बच्चे' कवि की दृष्टि में उसे प्रश्न के रूप में क्यों पूछा जाना चाहिए?
उत्तर - कवि का मानना है कि बच्चों के काम पर जाने की घटना बहुत भयानक है। इसका विवरण के रूप में खोलकर लिखना ठीक नहीं है, इसे प्रश्न के रूप में उठाना चाहिए. विवरण के रूप में लिखी गई बात सामान्य होती है, उसका प्रभाव कम पड़ता है जबकि प्रश्न के में उठाई गई बात का वजन होता है, वह अधिक प्रभावी होती है। इसीलिए कवि ने इस रूप बात को प्रश्न के रूप में उठाने को कहा है।
प्रश्न 3. सुविधा और मनोरंजन के उपकरणों से बच्चे वंचित क्यों हैं?
उत्तर - बच्चों के माता-पिता आर्थिक दृष्टि से कमजोर हैं, उनके पास धन का अभाव है इसीलिए वे सुविधा और मनोरंजन के उपकरण नहीं खरीद पाते हैं। वे इतने निर्धन होते हैं कि भोजन, वस्त्र आदि के भी लाले पड़ जाते हैं, इसीलिए वे छोटे बच्चों को काम पर भेजते हैं। इसके लिए समाज की व्यवस्था दोषी है। गरीब और गरीब होते जा रहे हैं तथा धनवान और धनी होते जा रहे हैं। इसीलिए निम्न वर्ग के बच्चे सुविधाओं और मनोरंजन से वंचित रह जाते हैं।
प्रश्न 4. दिन-प्रतिदिन के जीवन में हर कोई बच्चों को काम पर जाते देख रहा/ रही है, फिर भी किसी को कुछ अटपटा नहीं लगता। इस उदासीनता के क्या कारण हो सकते हैं?
उत्तर - इस उदासीनता के कारणों में सबसे प्रमुख कारण है- आज की स्वार्थपरता । हर आदमी आत्मकेन्द्रित हो गया है। उसके मन में संवेदना का अभाव होता जा रहा है। दूसरों के हित के बारे में कोई नहीं सोचता है। दूसरा कारण यह है कि वर्ग भेद की खाई बढ़ गई है। उच्च वर्ग निम्न वर्ग के बारे में सोचता ही नहीं है। उच्च वर्ग शोषण करने का आदी हो गया है। इसीलिए उसे बच्चों का काम पर जाना अटपटा नहीं लगता है। वह तो यह सोचता है कि बच्चों को काम पर लगाकर वह उनके परिवार की सहायता कर रहा है। इस तरह इसके मूल में पूँजीवादी अर्थव्यवस्था है।
प्रश्न 5. बच्चों का काम पर जाना धरती के एक बड़े हादसे के समान क्यों है?
उत्तर - बच्चों का काम पर जाना एक भयंकर क्रूर कर्म है। खेलने-खाने तथा पढ़ने की उम्र में बच्चों का काम पर जाना अमानवीय कार्य है इसीलिए यह एक हादसे के समान है। यह समाज की निष्ठुरता, कठोरता तथा हृदयहीनता का परिचायक है। इसमें बचपन मर जाता है। इसलिए बच्चों का काम पर जाना हादसा नहीं है तो और क्या हादसा होगा ?
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 6. काम पर जाते किसी बच्चे के स्थान पर अपने आपको रखकर देखिए। आपको जो महसूस होता है, इसे लिखिए।
उत्तर - मैंने जब अपने आपको काम पर जाने वाले बच्चे के स्थान पर देखा तो मुझे महसूस हुआ कि यह बहुत बड़ा अत्याचार, अन्याय है बच्चों के ऊपर जब पढ़ने, खेलने, खाने तथा विकसित होने की उम्र है तब काम पर भेज देना बचपन को पीस देना है, मार देना है। इस कल्पना से ही मेरा हृदय काँप उठा। मैं ईश्वर से प्रार्थना करने लगा कि ऐसा किसी के साथ मत होने देना।
प्रश्न 7. आपके विचार से बच्चों को काम पर क्यों नहीं भेजा जाना चाहिए ? उन्हें क्या करने के मौके मिलने चाहिए?
उत्तर - मेरे विचार से बच्चों को काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए। क्योंकि यदि वे पढ़ने, खेलने की उम्र में ही काम पर जाने लगेंगे तो उनकी शिक्षा-दीक्षा का क्या होगा। यदि इसी उम्र में वे काम पर जाने लगेंगे तो उनका शारीरिक और मानसिक विकास नहीं हो पाएगा। उनके स्वास्थ्य पर अच्छा प्रभाव नहीं होगा। देश-विदेश, समाज, व्यवस्था आदि का ज्ञान उन्हें नहीं हो सकेगा। उनके जीवन की नींव कमजोर होगी। शिक्षा के अभाव में वे देश के होनहार नागरिक नहीं हो पाएँगे। इसलिए मेरे विचार से बच्चों को पढ़ने, खेलने तथा मनोरंजन की सुविधा मिलनी चाहिए। उन्हें काम पर नहीं भेजा जाना चाहिए।
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I Hope the above information will be useful and
important.
(आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण
होगी।)
Thank you.
R F Temre
rfhindi.com
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