
पाठ 1 दो बैलों की कथा - प्रेमचंद कक्षा 9 (क्षितिज भाग 1) पाठ का सारांश संपूर्ण एवं अभ्यास प्रश्न
"दो बैलों की कथा" – एक शिक्षाप्रद कथा
"दो बैलों की कथा" प्रेमचंद द्वारा लिखी गई एक अत्यंत प्रसिद्ध और मार्मिक कहानी है, जो मानवीय मूल्यों, पशुओं के भावनात्मक जीवन, निष्ठा और अन्याय के खिलाफ विरोध जैसे महत्वपूर्ण विषयों को उजागर करती है। नीचे इस कथा का संक्षिप्त सारांश और मुख्य बिंदु दिए गए हैं, जिससे आप इसे विद्यार्थियों के लिए शिक्षाप्रद रूप में प्रस्तुत कर सकते हैं:
प्रेमचंद का परिचय
प्रेमचंद का जन्म सन् 1880 में बनारस के लमही गाँव में हुआ था। उनका मूल नाम धनपत राय था। प्रेमचंद का बचपन अभावों में बीता और शिक्षा बी.ए. तक ही हो पाई। उन्होंने शिक्षा विभाग में नौकरी की परंतु असहयोग आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के लिए सरकारी नौकरी से त्यागपत्र दे दिया और लेखन कार्य के प्रति पूरी तरह समर्पित हो गए। सन् 1936 में इस महान कथाकार का देहांत हो गया।
प्रेमचंद की कहानियाँ मानसरोवर के आठ भागों में संकलित हैं। सेवासदन, प्रेमाश्रम, रंगभूमि, कायाकल्प, निर्मला, गबन, कर्मभूमि, गोदान उनके प्रमुख उपन्यास हैं। उन्होंने हंस, जागरण, माधुरी आदि पत्रिकाओं का संपादन भी किया। कथा साहित्य के अतिरिक्त प्रेमचंद ने निबंध एवं अन्य प्रकार का गद्य लेखन भी प्रचुर मात्रा में किया। प्रेमचंद साहित्य को सामाजिक परिवर्तन का सशक्त माध्यम मानते थे। उन्होंने जिस गाँव और शहर के परिवेश को देखा और जिया उसकी अभिव्यक्ति उनके कथा साहित्य में मिलती है। किसानों और मज़दूरों की दयनीय स्थिति, दलितों का शोषण, समाज में स्त्री की दुर्दशा और स्वाधीनता आंदोलन आदि उनकी रचनाओं के मूल विषय हैं।
प्रेमचंद के कथा साहित्य का संसार बहुत व्यापक है। उसमें मनुष्य ही नहीं पशु-पक्षियों को भी अद्भुत आत्मीयता मिली है। बड़ी से बड़ी बात को सरल भाषा में सीधे और संक्षेप में कहना प्रेमचंद के लेखन की प्रमुख विशेषता है। उनकी भाषा सरल, सजीव एवं मुहावरेदार है तथा उन्होंने लोक प्रचलित शब्दों का प्रयोग कुशलतापूर्वक किया है।
दो बैलों की कथा के माध्यम से प्रेमचंद ने कृषक समाज और पशुओं के. भावात्मक संबंध का वर्णन किया है। इस कहानी में उन्होंने यह भी बताया है कि स्वतंत्रता सहज में नहीं मिलती, उसके लिए बार-बार संघर्ष करना पड़ता है। इस प्रकार परोक्ष रूप से यह कहानी आज़ादी के आंदोलन की भावना से जुड़ी है। इसके साथ ही इस कहानी में प्रेमचंद ने पंचतंत्र और हितोपदेश की कथा-परंपरा का उपयोग और विकास किया है।
संक्षिप्त सारांश:
"दो बैलों की कथा" कहानी में दो बैलों — हीरा और मोती — के माध्यम से प्रेमचंद ने न केवल पशुओं की संवेदनाओं को चित्रित किया है, बल्कि मानव समाज की विडंबनाओं, त्याग, मूल्यों, और न्याय-अन्याय को भी दर्शाया है।
बैल अपने मालिक झूरी से गहरा प्रेम करते हैं, पर जब उन्हें उसके साले गया के यहाँ भेजा जाता है, तो उन्हें बेच दिया गया समझकर दुखी हो जाते हैं। नए स्थान पर उन्हें न अच्छा व्यवहार मिलता है, न ही उचित खाना। इस अपमान और उपेक्षा को वे सहन नहीं कर पाते और रात्रि में रस्सियाँ तोड़कर अपने पुराने घर लौट आते हैं।
गाँव वाले उनकी वफादारी और साहस पर चकित होते हैं, लेकिन झूरी की पत्नी उन्हें कामचोर और नमकहराम कहती है, और सजा स्वरूप उन्हें केवल सूखा भूसा खिलाने का आदेश देती है। अंत में फिर से गया उन्हें ले जाता है, पर दोनों बैल वहां भी अत्याचार सहते हैं, खासकर मोती के मन में विद्रोह जागता है।
प्रेमचंद
मुख्य बिंदु व शिक्षाएं
1. निष्ठा और आत्मसम्मान –
हीरा और मोती केवल जानवर नहीं, बल्कि आत्मसम्मान वाले जीव हैं। वे अन्याय नहीं सहते।
2. सीधापन और बेवकूफी –
लेखक आरंभ में गधे की सीधाई की प्रशंसा करते हुए समाज की उस मानसिकता पर व्यंग्य करते हैं जो सद्गुणों को कमजोरी समझती है।
3. मानवता पशुओं में भी –
बैल भी एक-दूसरे से भावनात्मक रूप से जुड़े होते हैं और परस्पर संवाद करते हैं।
4. स्त्री-पुरुष का दृष्टिकोण –
झूरी बैलों को परिवार का हिस्सा मानता है, जबकि उसकी पत्नी उपयोगिता के आधार पर उनका मूल्य तय करती है।
5. विद्रोह का स्वर –
मोती का विद्रोह शोषण के विरुद्ध उठती आवाज़ है। कहानी बताती है कि अत्याचार सहना कमजोरी नहीं, बल्कि उसकी एक सीमा होती है।
प्रस्तुत करने का तरीका (शैक्षणिक दृष्टिकोण से)
1. मुख्य पात्रों का परिचय (हीरा, मोती, झूरी, गया, झूरी की पत्नी)
2. भावात्मक संवाद और पशु-मानव संबंध
3. नैतिक संदेश पर विशेष ध्यान
दो बैलों की कथा- संपूर्ण पाठ
जानवरों में गधा सबसे ज्यादा बुद्धिहीन समझा जाता है। हम जब किसी आदमी को परले दरजे का बेवकूफ़ कहना चाहते हैं, तो उसे गधा कहते हैं। गधा सचमुच बेवकूफ़ है, या उसके सीधेपन, उसकी निरापद सहिष्णुता ने उसे यह पदवी दे दी है, इसका निश्चय नहीं किया जा सकता। गायें सींग मारती हैं, ब्याई हुई गाय तो अनायास ही सिंहनी का रूप धारण कर लेती है। कुत्ता भी बहुत गरीब जानवर है, लेकिन कभी-कभी उसे भी क्रोध आ ही जाता है; किंतु गधे को कभी क्रोध करते नहीं सुना, न देखा। जितना चाहो गरीब को मारो, चाहे जैसी खराब, सड़ी हुई घास सामने डाल दो, उसके चेहरे पर कभी असंतोष की छाया भी न दिखाई देगी। वैशाख में चाहे एकाध बार कुलेल कर लेता होः पर हमन तो उसे कभी खुश होते नहीं देखा। उसके चेहरे पर एक विषाद स्थायी रूप से छाया रहता है। सुख-दुख, हानि-लाभ, किसी भी दशा में उसे बदलते नहीं देखा। ऋषियों-मुनियों के जितने गुण हैं वे सभी उसमें पराकाष्ठा को पहुँच गए हैं; पर आदमी उसे बेवकूफ़ कहता है। सद्गुणों का इतना अनादर कहीं नहीं देखा। कदाचित सीधापन संसार के लिए उपयुक्त नहीं है। देखिए न, भारतवासियों की अफ्रीका में व्य दुर्दशा हो रही है? क्यों अमरीका में उन्हें घुसने नहीं दिया जाता? बेचारे शराब नहीं पीते, चार पैसे कुसमय के लिए बचाकर रखते हैं, जी तोड़कर काम करते हैं, किसी से लड़ाई-झगड़ा नहीं करते, चार बातें सुनकर गम खा जाते हैं फिर भी बदनाम हैं। कहा जाता है, वे जीवन के आदर्श को नीचा करते हैं। अगर वे भी ईंट का जवाब पत्थर से देना सीख जाते तो शायद सभ्य कहलाने लगते। जापान की मिसाल सामने है। एक ही विजय ने उसे संसार की सभ्य जातियों में गण्य बना दिया।
लेकिन गधे का एक छोटा भाई और भी है, जो उससे कम ही गधा है, और वह है 'बैल'। जिस अर्थ में हम गधे का प्रयोग करते हैं, कुछ उसी से मिलते-जुलते अर्थ में 'बछिया के ताऊ' का भी प्रयोग करते हैं। कुछ लोग बैल को शायद बेवकूफ़ों में सर्वश्रेष्ठ कहेंगे; मगर हमारा विचार ऐसा नहीं है। बैल कभी-कभी मारता भी है, कभी-कभी अड़ियल बैल भी देखने में आता है। और भी कई रीतियों से अपना असंतोष प्रकट कर देता है; अतएव उसका स्थान गधे से नीचा है।
झूरी काछी के दोनों बैलों के नाम थे हीरा और मोती। दोनों पछाईं जाति के थे-देखने में सुंदर, काम में चौकस, डील में ऊँचे। बहुत दिनों साथ रहते-रहते दोनों में भाईचारा हो गया था। दोनों आमने-सामने या आस-पास बैठे हुए एक-दूसरे से मूक-भाषा में विचार-विनिमय करते थे। एक, दूसरे के मन की बात कैसे समझ जाता था, हम नहीं कह सकते। अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है। दोनों एक-दूसरे को चाटकर और सूँघकर अपना प्रेम प्रकट करते, कभी-कभी दोनों सींग भी मिला लिया करते थे-विग्रह के नाते से नहीं, केवल विनोद के भाव से, आत्मीयता के भाव से, जैसे दोस्तों में घनिष्ठता होतें ही धौल-धप्पा होने लगता है। इसके बिना दोस्ती कुछ फुसफुसी, कुछ हलकी-सी रहती है, जिस पर ज़्यादा विश्वास नहीं किया जा सकता। जिस वक्त ये दोनों बैल हल या गाड़ी में जोत दिए जाते और गरदन हिला हिलाकर चलते, उस वक्त हर एक की यही चेष्टा होती थी कि ज़्यादा-से-ज्यादा बोझ मेरी ही गरदन पर रहे। दिन-भर के बाद दोपहर या संध्या को दोनों खुलते, तो एक-दूसरे को चाट-चूटकर अपनी थकान मिटा लिया करते। नाँद में खली-भूसा पड़ जाने के बाद दोनों साथ उठते, साथ नाँद में मुँह डालते और साथ ही बैठते थे। एक मुँह हटा लेता, तो दूसरा भी हटा लेता था।
संयोग की बात, झूरी ने एक बार गोई को ससुराल भेज दिया। बैलों को क्या मालूम. वे क्यों भेजे जा रहे हैं। समझे, मालिक ने हमें बेच दिया। अपना यों बेचा जाना उन्हें अच्छा लगा या बुरा, कौन जाने, पर झूरी के साले गया को घर तक गोई ले जाने में दाँतों पसीना आ गया। पीछे से हाँकता तो दोनों दाएँ-बाएँ भागते, पगहिया पकड़कर आगे से खींचता, तो दोनों पीछे को जोर लगाते। मारता तो दोनों सींग नीचे करके हुँकारते। अगर ईश्वर ने उन्हें वाणी दी होती, तो झूरी से पूछते-तुम हम गरीबों को क्यों निकाल रहे हो? हमने तो तुम्हारी सेवा करने में कोई कसर नहीं उठा रखी। अगर इतनी मेहनत से काम न चलता था तो और काम ले लेते। हमें तो तुम्हारी चाकरी में मर जाना कबूल था। हमने कभी दाने-चारे की शिकायत नहीं की। तुमने जो कुछ खिलावा. वह सिर झुकाकर खा लिया, फिर तुमने हमें इस जालिम के हाथ क्यों बेच दिया?
संध्या समय दोनों बैल अपने नए स्थान पर पहुँचे। दिन-भर के भूखे थे, लेकिन जब नाँद में लगाए गए, तो एक ने भी उसमें मुँह न डाला। दिल भारी हो रहा था। जिसे उन्होंने अपना घर समझ रखा था, वह आज उनसे छूट गया था। यह नया घर, नया गाँव, नए आदमी, उन्हें बेगानों से लगते थे।
दोनों ने अपनी मूक-भाषा में सलाह की. एक-दूसरे को कनखियों से देखा और लेट गए। जब गाँव में सोता पड़ गया, तो दोनों ने जोर मारकर पगहे तुड़ा डाले और घर की तरफ़ चले। पगहे बहुत मज़बूत थे। अनुमान न हो सकता था कि कोई बैल उन्हें तोड़ सकेगा; पर इन दोनों में इस समय दूनी शक्ति आ गई थी। एक-एक झटके में रस्सियाँ टूट गईं।
झूरी प्रातःकाल सोकर उठा, तो देखा कि दोनों बैल चरनी पर खड़े हैं। दोनों की गरदनों में आधा-आधा गराँव लटक रहा है। घुटने तक पाँव कीचड़ से भरे हैं और दोनों की आँखों में विद्रोहमय स्नेह झलक रहा है।
झूरी बैलों को देखकर स्नेह से गद्गद हो गया। दौड़कर उन्हें गले लगा लिया। प्रेमालिंगन और चुंबन का वह दृश्य बड़ा ही मनोहर था।
घर और गाँव के लड़के जमा हो गए और तालियाँ बजा-बजाकर उनका स्वागत करने लगे। गाँव के इतिहास में यह घटना अभूतपूर्व न होने पर भी महत्वपूर्ण थी। बाल-सभा ने निश्चय किया, दोनों पशु-वीरों को अभिनंदन-पत्र देना चाहिए। कोई अपने घर से रोटियाँ लाया, कोई गुड़, कोई चोकर, कोई भूसी। एक बालक ने कहा-ऐसे बैल किसी के पास न होंगे।
दूसरे ने समर्थन किया-इतनी दूर से दोनों अकेले चले आए।
तीसरा बोला-बैल नहीं हैं वे उस जनम के आदमी हैं।
इसका प्रतिवाद करने का किसी को साहस न हुआ।
झूरी की स्त्री ने बैलों को द्वार पर देखा, तो जल उठी। बोली-कैसे नमकहराम बैल हैं कि एक दिन वहाँ काम न किया; भाग खड़े हुए।
झूरी अपने बैलों पर यह आक्षेप न सुन सका-नमकहराम क्यों हैं? चारा-दाना न दिया होगा, तो क्या करते?
स्त्री ने रोब के साथ कहा-बस, तुम्हीं तो बैलों को खिलाना जानते हो, और तो सभी पानी पिला-पिलाकर रखते हैं।
FIF झूरी ने चिढ़ाया चारा मिलता तो क्यों भागते ?
स्त्री चिढ़ी-भागे इसलिए कि वे लोग तुम-जैसे बुद्धओं की तरह वैलों को सहलाते नहीं। खिलाते हैं, तो रगड़कर जोतते भी हैं। ये दोनों ठहरे कामचोर, भाग निकले। अब देखूँ, कहाँ से खली और चोकर मिलता है! सूखे भूसे के सिवा कुछ क्त दूँगी, खाएँ चाहें मरें।
वही हुआ। मजूर को कड़ी ताकीद कर दी गई कि बैलों को खाली सूखा भूसा दिया जाए।
बैलों ने नाँद में मुँह डाला, तो फीका फीका। न कोई चिकनाहट, न कोई रस! क्या खाएँ? आशा-भरी आँखों से द्वार की ओर ताकने लगे।
झूरी ने मजूर से कहा थोड़ी सी खली. क्यों नहीं डाल देता बे?
'मालकिन मुझे मार ही डालेगी।'
'चुराकर डाल आ।'
'न दादा, पीछे से तुम भी उन्हीं की-सी कहोगे।'
दूसरे दिन झूरी का साला फिर आया और बैलों को ले चला। अबकी उसने दोनों को गाड़ी में जोता।
दो-चार बार मोती ने गाड़ी को सड़क की खाई में गिराना चाहा; पर हीरा ने संभाल लिया। वह ज्यादा सहनशील था।
संध्या-समय घर पहुँचकर उसने दोनों को मोटी रस्सियों से बाँधा और कल की शरारत का मजा चखाया। फिर वही सूखा भूसा डाल दिया। अपने दोनों बैलों को खली, चूनी सब कुछ दी।
दोनों बैलों का ऐसा अपमान कभी न हुआ था। झूरी इन्हें फूल की छड़ी से भी न छूता था। उसकी टिटकार पर दोनों उड़ने लगते थे। यहाँ मार पड़ी। आहत-सम्मान की व्यथा तो थी ही, उस पर मिला सूखा भूसा !
नाँद की तरफ आँखें तक न उठाई।
दूसरे दिन गया ने बैलों को हल में जोता, पर इन दोनों ने जैसे पाँव न उठाने की कसम खा ली थी। वह मारते-मारते थक गया; पर दोनों ने पाँव न उठाया। एक बार जब उस निर्दयी ने हीरा की नाक पर खूब डंडे जमाए, तो मोती का गुस्सा काबू के बाहर हो गया। हल लेकर भागा। हल, रस्सी, जुआ, जोत, सब टूट-टाट कर बराबर हो गया। गले में बड़ी-बड़ी रस्सियाँ न होतीं, तो दोनों पकड़ाई में न आते।
हीरा ने मूक-भाषा में कहा-भागना व्यर्थ है।
मोती ने उत्तर दिया-तुम्हारी तो इसने जान ही ले ली थी।
'अबकी बड़ी मार पड़ेगी।'
'पड़ने दो, बैल का जन्म लिया है, तो मार से कहाँ तक बचेंगे?'
'गया दो आदमियों के साथ दौड़ा आ रहा है। दोनों के हाथों में लाठियाँ हैं।' माती बोला-कहो तो दिखा दूँ कुछ मज्जा मैं भी। लाठी लेकर आ रहा है।
हीरा ने समझाया नहीं भाई। खड़े हो जाओ।
'मुझे मारेगा, तो मैं भी एक-दो को गिरा दूँगा!'
'नहीं। हमारी जाति का यह धर्म नहीं है।'
मोती दिल में ऐंठकर रह गया। गया आ पहुँचा और दोनों को पकड़ कर ले चला। कुशल हुई कि उसने इस वक्त मारपीट न की, नहीं तो मोती भी पलट पड़ता। उसके तेवर देखकर गया और उसके सहायक समझ गए कि इस वक्त टाल जाना ही मसलहत है।
आज दोनों के सामने फिर वही सूखा भूसा लाया गया। दोनों चुपचाप खड़े रहे। घर के लोग भोजन करने लगे। उस वक्त छोटी-सी लड़की दो रोटियाँ लिए निकली, और दोनों के मुँह में देकर चली गई। उस एक रोटी से इनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हृदय को मानो भोजन मिल गया। यहाँ भी किसी सज्जन का वास है। लड़की भैरो की थी। उसकी माँ मर चुकी थी। सौतेली माँ उसे मारती रहती थी, इसलिए इन बैलों से उसे एक प्रकार की आत्मीयता हो गई थी। दोनों दिन-भर जोते जाते, डंडे खाते, अड़ते। शाम को थान पर बाँध दिए जाते और रात को वही बालिका उन्हें दो रोटियाँ खिला जाती।
प्रेम के इस प्रसाद की यह बरकत थी कि दो-दो गाल सूखा भूसा खाकर भी दोनों दुर्बल न होते थे, मगर दोनों की आँखों में, रोम-रोम में विद्रोह भरा हुआ था।
एक दिन मोती ने मूक-भाषा में कहा-अब तो नहीं सहा जाता, हीरा !
'क्या करना चाहते हो?'
'एकाध को सींगों पर उठाकर फेंक दूँगा।'
'लेकिन जानते हो, वह प्यारी लड़की, जो हमें रोटियाँ खिलाती है, उसी की लड़की है, जो इस घर का मालिक है। यह बेचारी अनाथ न हो जाएगी?'
'तो मालकिन को न फेंक दूँ। वही तो उस लड़की को मारती है।'
'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूले जाते हो।'
'तुम तो किसी तरह निकलने ही नहीं देते। बताओ, तुड़ाकर भाग चलें।'
'हाँ, यह मैं स्वीकार करता हूँ, लेकिन इतनी मोटी रस्सी टूटेगी कैसे?'
'इसका एक उपाय है। पहले रस्सी को थोड़ा-सा चबा लो। फिर एक झटके में जाती है।'
रात को जब बालिका रोटियाँ खिलाकर चली गई, दोनों रस्सियाँ चबाने लगे, पर मोटी रस्सी मुँह में न आती थी। बेचारे बार-बार जोर लगाकर रह जाते थे।
सहसा घर का द्वार खुला और वही लड़की निकली। दोनों सिर झुकाकर उसका हाथ चाटने लगे। दोनों की पूँछें खड़ी हो गईं। उसने उनके माथे सहलाए और बोली-खोले देती हूँ। चुपके से भाग जाओ, नहीं तो यहाँ लोग मार डालेंगे। आज घर में सलाह हो रही है कि इनकी नाकों में नाथ डाल दी जाए।
उसने गाँव खोल दिया, पर दोनों चुपचाप खड़े रहे।
मोती ने अपनी भाषा में पूछा-अब चलते क्यों नहीं?
हीरा ने कहा-चलें तो लेकिन कल इस अनाथ पर आफत आएगी। सब इसी पर संदेह करेंगे। सहसा बालिका चिल्लाई-दोनों फूफावाले बैल भागे जा रहे हैं। ओ दादा! दादा! दोनों बैल भागे जा रहे हैं, जल्दी दौड़ो। गया हड़बड़ाकर भीतर से निकला और बैलों को पकड़ने चला। वे दोनों भागे। गया ने पीछा किया। और भी तेज हुए। गया ने शोर मचाया। फिर गाँव के कुछ आदमियों को भी साथ लेने के लिए लौटा। दोनों मित्रों को भागने का मौका मिल गया। सीधे दौड़ते चले गए। यहाँ तक कि मार्ग का ज्ञान न रहा। जिस परिचित मार्ग से आए थे, उसका यहाँ पता न था। नए-नए गाँव मिलने लगे। तब दोनों एक खेत के किनारे खड़े होकर सोचने लगे, अब क्या करना चाहिए।
हीरा ने कहा-मालूम होता है, राह भूल गए।
'तुम भी बेतहाशा भागे। वहीं उसे मार गिराना था।'
'उसे मार गिराते, तो दुनिया क्या कहती? वह अपना धर्म छोड़ दे, लेकिन हम अपना धर्म क्यों छोड़ें?'
दोनों भूख से व्याकुल हो रहे थे। खेत में मटर खड़ी थी। चरने लगे। रह-रहकर आहट ले लेते थे, कोई आता तो नहीं है।
जब पेट भर गया, दोनों ने आजादी का अनुभव किया, तो मस्त होकर उछलने-कूदने लगे। पहले दोनों ने डकार ली। फिर सींग मिलाए और एक-दूसरे को ठेलने लगे। मोती ने हीरा को कई कदम पीछे हटा दिया, यहाँ तक कि वह खाई में गिर गया। तब उसे भी क्रोध आया। संभलकर उठा और फिर मोती से मिल गया। मोती ने देखा-खेल में झगड़ा हुआ चाहता है, तो किनारे हट गया।
अरे! यह क्या? कोई साँड डौंकता चला आ रहा है। हाँ, साँड ही है। वह सामने आ पहुँचा। दोनों मित्र बगलें झाँक रहे हैं। साँड पूरा हाथी है। उससे भिड़ना जान से हाथ धोना है; लेकिन न भिड़ने पर भी जान बचती नहीं नजर आती। इन्हीं की तरफ़ आ भी रहा है। कितनी भयंकर सूरत है!
मोती मूक-भाषा में कहा-बुरे फंसे। जान बचेगी? कोई उपाय सोचो।
हीरा ने चिंतित स्वर में कहा-अपने घमंड में भूला हुआ है। आरजू-विनती न सुनेगा।
'भाग क्यों न चलें?' 'भागना कायरता है।'
'तो फिर यहीं मरो। बंदा तो नौ दो ग्यारह होता है।'
'और जो दौड़ाए?'
'तो फिर कोई उपाय सोचो जल्द !'
'उपाय यही है कि उस पर दोनों जने एक साथ चोट करें? मैं आगे से रगेदता हूँ, तुम पीछे से रगेदो, दोहरी मार पड़ेगी, तो भाग खड़ा होगा। मेरी ओर झपटे, तुम बगल से उसके पेट में सींग घुसेड़ देना। जान जोखिम है; पर दूसरा उपाय नहीं है।'
दोनों मित्र जान हथेलियों पर लेकर लपके। साँड को भी संगठित शत्रुओं से लड़ने का तजरबा न था। वह तो एक शत्रु से मल्लयुद्ध करने का आदी था। ज्यों ही हीरा पर झपटा, मोती ने पीछे से दौड़ाया। साँड उसकी तरफ़ मुड़ा, तो हीरा ने रगेदा। साँड चाहता था कि एक-एक करके दोनों को गिरा ले; पर ये दोनों भी उस्ताद थे। उसे वह अवसर न देते थे। एक बार साँड झल्लाकर हीरा का अंत कर देने के लिए चला कि मोती ने बगल से आकर पेट में सींग भोंक दिया। साँड क्रोध में आकर पीछे फिरा तो हीरा ने दूसरे पहलू में सींग चुभा दिया। आखिर बेचारा ज़ख्मी होकर भागा और दोनों मित्रों ने दूर तक उसका पीछा किया। यहाँ तक कि साँड बेदम होकर गिर पड़ा। तब दोनों ने उसे छोड़ दिया।
दोनों मित्र विजय के नशे में झूमते चले जाते थे।
मोती ने अपनी सांकेतिक भाषा में कहा-मेरा जी तो चाहता था कि बच्चा को मार ही डालूँ।
हीरा ने तिरस्कार किया-गिरे हुए बैरी पर सींग न चलाना चाहिए।
'यह सब ढोंग है। बैरी को ऐसा मारना चाहिए कि फिर न उठे।'
'अब घर कैसे पहुँचेंगे, वह सोचो।'
'पहले कुछ खा लें, तो सोचें।'
सामने मटर का खेत था ही। मोती उसमें घुस गया। हीरा मना करता रहा, पर उसने एक न सुनी। अभी दो ही चार ग्रास खाए थे कि दो आदमी लाठियाँ लिए दौड़ पड़े और दोनों मित्रों को घेर लिया। हीरा तो मेड़ पर था, निकल गया। मोती सींचे हुए खेत में था। उसके खुर कीचड़ में धँसने लगे। न भाग सका। पकड़ लिया। हीरा ने देखा, संगी संकट में हैं, तो लौट पड़ा। फँसेंगे तो दोनों फँसेंगे। रखवालों ने उसे भी पकड़ लिया।
प्रातःकाल दोनों मित्र कांजीहौस में बंद कर दिए गए।
दोनों मित्रों को जीवन में पहली बार ऐसा साबिका पड़ा कि सारा दिन बीत गया और खाने को एक तिनका भी न मिला। समझ ही में न आता था, यह कैसा स्वामी है। इससे तो गया फिर भी अच्छा था। यहाँ कई भैंसें थीं, कई बकरियाँ, कई घोड़े, कई गधे; पर किसी के सामने चारा न था, सब ज़मीन पर मुरदों की तरह पड़े थे। कई तो इतने कमज़ोर हो गए थे कि खड़े भी न हो सकते थे। सारा दिन दोनों मित्र फाटक की ओर टकटकी लगाए ताकते रहे; पर कोई चारा लेकर आता न दिखाई दिया। तब दोनों ने दीवार की नमकीन मिट्टी चाटनी शुरू की, पर इससे क्या तृप्ति होती ?
रात को भी जब कुछ भोजन न मिला, तो हीरा के दिल में विद्रोह की ज्वाला दहक उठी। मोती से बोला अब तो नहीं रहा जाता मोती!
मोती ने सिर लटकाए हुए जवाब दिया- मुझे तो मालूम होता है, प्राण निकल रहे हैं।
'इतनी जल्द हिम्मत न हारो भाई! यहाँ से भागने का कोई उपाय निकालना चाहिए।'
'आओ दीवार तोड़ डालें।'
'मुझसे तो अब कुछ नहीं होगा।'
'बस इसी बूते पर अकड़ते थे!'
'सारी अकड़ निकल गई।'
बाड़े की दीवार कच्ची थी। हीरा मजबूत तो था ही, अपने नुकीले सींग दीवार में गड़ा दिए और ज़ोर मारा, तो मिट्टी का एक चिप्पड़ निकल आया। फिर तो उसका साहस बढ़ा। इसने दौड़-दौड़कर दीवार पर चोटें कीं और हर चोट में थोड़ी-थोड़ी मिट्टी गिराने लगा।
उसी समय कांजीहौस का चौकीदार लालटेन लेकर जानवरों की हाज़िरी लेने आ निकला। हीरा का उजड्डुपन देखकर उसने उसे कई डंडे रसीद किए और मोटी-सी रस्सी से बाँध दिया।
मोती ने पड़े-पड़े कहा-आखिर मार खाई, क्या मिला?
'अपने बूते-भर ज़ोर तो मार दिया।'
'ऐसा ज़ोर मारना किस काम का कि और बंधन में पड़ गए।'
'ज़ोर तो मारता ही जाऊँगा, चाहे कितने ही बंधन पड़ते जाएँ।'
'जान से हाथ धोना पड़ेगा।'
'कुछ परवाह नहीं। यों भी तो मरना ही है। सोचो, दीवार खुद जाती, तो कितनी जानें बच जातीं। इतने भाई यहाँ बंद हैं। किसी की देह में जान नहीं है। दो-चार दिन और यही हाल रहा, तो सब मर जाएँगे।'
'हाँ, यह बात तो है। अच्छा, तो ला, फिर मैं भी जोर लगाता हूँ।'
मोती ने भी दीवार में उसी जगह सींग मारा। थोड़ी-सी मिट्टी गिरी और फिर हिम्मत बढ़ी। फिर तो वह दीवार में सींग लगाकर इस तरह ज़ोर करने लगा, मानो किसी प्रतिद्वंद्वी से लड़ रहा है। आखिर कोई दो घंटे की जोर-आजमाई के बाद दीवार ऊपर से लगभग एक हाथ गिर गई। उसने दूनी शक्ति से दूसरा धक्का मारा, तो आधी दीवार गिर पड़ी।
दीवार का गिरना था कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे। तीनों घोड़ियाँ सरपट भाग निकलीं। फिर बकरियाँ निकलीं। इसके बाद भैंसें भी खिसक गईं; पर गधे अभी तक ज्यों-के-त्यों खड़े थे।
हीरा ने पूछा-तुम दोनों क्यों नहीं भाग जाते?
एक गधे ने कहा-जो कहीं फिर पकड़ लिए जाएँ!
'तो क्या हरज है। अभी तो भागने का अवसर है।'
'हमें तो डर लगता है, हम यहीं पड़े रहेंगे।' आधी रात से ऊपर जा चुकी थी। दोनों गधे अभी तक खड़े सोच रहे थे कि भागें या न भागें, और मोती अपने मित्र की रस्सी तोड़ने में लगा हुआ था। जब वह हार गया, तो हीरा ने कहा-तुम जाओ, मुझे यहीं पड़ा रहने दो। शायद कहीं भेंट हो जाए।
मोती ने आँखों में आँसू लाकर कहा- तुम मुझे इतना स्वार्थी समझते हो, हीरा ? हम और तुम इतने दिनों एक साथ रहे हैं। आज तुम विपत्ति में पड़ गए, तो मैं तुम्हें छोड़कर अलग हो जाऊँ।
हीरा ने कहा-बहुत मार पड़ेगी। लोग समझ जाएँगे, यह तुम्हारी शरारत है।
मोती गर्व से बोला-जिस अपराध के लिए तुम्हारे गले में बंधन पड़ा, उसके लिए अगर मुझ पर मार पड़े, तो क्या चिंता ! इतना तो हो ही गया कि नौ-दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगे।
यह कहते हुए मोती ने दोनों गधों को सींगों से मार-मारकर बाड़े के बाहर निकाला और तब अपने बंधु के पास आकर सो रहा।
भोर होते ही मुंशी और चौकीदार तथा अन्य कर्मचारियों में कैसी खलबली मची, इसके लिखने की ज़रूरत नहीं। बस, इतना ही काफ़ी है कि मोती की खूब मरम्मत हुई और उसे भी मोटी रस्सी से बाँध दिया गया।
दो बैलों की कथा - भाग 5
एक सप्ताह तक दोनों मित्र वहाँ बँधे पड़े रहे। किसी ने चारे का एक तृण भी न डाला। हाँ, एक बार पानी दिखा दिया जाता था। यही उनका आधार था। दोनों इतने दुर्बल हो गए थे कि उठा तक न जाता था, ठठरियाँ निकल आई थीं।
एक दिन बाड़े के सामने डुग्गी बजने लगी और दोपहर होते-होते वहाँ पचास-साठ आदमी जमा हो गए। तब दोनों मित्र निकाले गए और उनकी देखभाल होने लगी। लोग आ-आकर उनकी सूरत देखते और मन फीका करके चले जाते। ऐसे मृतक बैलों का कौन खरीदार होता? सहसा एक दढ़ियल आदमी, जिसकी आँखें लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया और दोनों मित्रों के कूल्हों में उँगली गोदकर मुंशी जी से बातें करने लगा। उसका चेहरा देखकर अंतर्ज्ञान से दोनों मित्रों के दिल काँप उठे। वह कौन है और उन्हें क्यों टटोल रहा है, इस विषय में उन्हें कोई संदेह न हुआ। दोनों ने एक-दूसरे को भीत नेत्रों से देखा और सिर झुका लिया।
हीरा ने कहा-गया के घर से नाहक भागे। अब जान न बचेगी।
मोती ने अश्रद्धा के भाव से उत्तर दिया- कहते हैं, भगवान सबके ऊपर दया करते हैं। उन्हें हमारे ऊपर क्यों दया नहीं आती?
'भगवान के लिए हमारा मरना-जीना दोनों बराबर है। चलो, अच्छा ही है, कुछ दिन उसके पास तो रहेंगे। एक बार भगवान ने उस लड़की के रूप में हमें बचाया था। क्या अब न बचाएँगे?'
'यह आदमी छुरी चलाएगा। देख लेना।'
'तो क्या चिंता है? माँस, खाल, सींग, हड्डी सब किसी-न-किसी काम आ जाएँगे।'
नीलाम हो जाने के बाद दोनों मित्र उस दढ़ियल के साथ चले। दोनों की बोटी-बोटी काँप रही थी। बेचारे पाँव तक न उठा सकते थे, पर भय के मारे गिरते-पड़ते भागे जाते थे; क्योंकि वह जरा भी चाल धीमी हो जाने पर जोर से डंडा जमा देता था।
राह में गाय-बैलों का एक रेवड़ हरे-हरे हार में चरता नज़र आया। सभी जानवर प्रसन्न थे, चिकने, चपल। कोई उछलता था, कोई आनंद से बैठा पागुर करता था। कितना सुखी जीवन था इनका; पर कितने स्वार्थी हैं सब। किसी को चिंता नहीं कि उनके दो भाई वधिक के हाथ पड़े कैसे दुखी हैं।
सहसा दोनों को ऐसा मालूम हुआ कि यह परिचित राह है। हाँ, इसी रास्ते से गया उन्हें ले गया था। वही खेत, वही बाग, वही गाँव मिलने लगे। प्रतिक्षण उनकी चाल तेज होने लगी। सारी थकान, सारी दुर्बलता गायब हो गई। आह! यह लो! अपना ही हार आ गया। इसी कएँ पर हम पुर चलाने आया करते थे, यही कुआँ है। मोती ने कहा-हमारा घर नगीच आ गया।
हीरा बोला-भगवान की दया है।
'मैं तो अब घर भागता हूँ।'
'यह जाने देगा?'
'इसे मैं मार गिराता हूँ।'
'नहीं-नहीं, दौड़कर थान पर चलो। वहाँ से हम आगे न जाएँगे।'
दोनों उन्मत्त होकर बछड़ों की भाँति कुलेलें करते हुए घर की ओर दौड़े। वह हमारा थान है। दोनों दौड़कर अपने थान पर आए और खड़े हो गए। दढ़ियल भी पीछे-पीछे दौड़ा चला आता था।
झूरी द्वार पर बैठा धूप खा रहा था। बैलों को देखते ही दौड़ा और उन्हें बारी-बारी से गले लगाने लगा। मित्रों की आँखों से आनंद के आँसू बहने लगे। एक झूरी का हाथ चाट रहा था।
दढ़ियल ने जाकर बैलों की रस्सियाँ पकड़ लीं।
झूरी ने कहा-मेरे बैल हैं।
'तुम्हारे बैल कैसे? मैं मवेशीखाने से नीलाम लिए आता हूँ।'
'मैं तो समझा हूँ, चुराए लिए आते हो! चुपके से चले जाओ। मेरे बैल हैं। मैं बेखूँगा तो बिकेंगे। किसी को मेरे बैल नीलाम करने का क्या अख्तियार है?'
'जाकर थाने में रपट कर दूँगा।'
'मेरे बैल हैं। इसका सबूत यह है कि मेरे द्वार पर खड़े हैं।'
दढ़ियल झल्लाकर बैलों को ज़बरदस्ती पकड़ ले जाने के लिए बढ़ा। उसी वक्त मोती ने सींग चलाया। दढ़ियल पीछे हटा। मोती ने पीछा किया। दढ़ियल भागा। मोती पीछे दौड़ा। गाँव के बाहर निकल जाने पर वह रुका; पर खड़ा दढ़ियल का रास्ता देख रहा था, दढ़ियल दूर खड़ा धमकियाँ दे रहा था, गालियाँ निकाल रहा था, पत्थर फेंक रहा था। और मोती विजयी शूर की भाँति उसका रास्ता रोके खड़ा था। गाँव के लोग यह तमाशा देखते थे और हँसते थे। जब दढ़ियल हारकर चला गया, तो मोती अकड़ता हुआ लौटा।
हीरा ने कहा-मैं डर रहा था कि कहीं तुम गुस्से में आकर मार न बैठो।
'अगर वह मुझे पकड़ता, तो मैं बे-मारे न छोड़ता।'
'अब न आएगा।'
'आएगा तो दूर ही से खबर लूँगा। देखूँ, कैसे ले जाता है।'
'जो गोली मरवा दे?'
'मर जाऊँगा, पर उसके काम तो न आऊँगा।'
'हमारी जान को कोई जान ही नहीं समझता।'
'इसीलिए कि हम इतने सीधे हैं।'
जरा देर में नाँदों में खली, भूसा, चोकर और दाना भर दिया गया और दोनों मित्र खाने लगे। झूरी खड़ा दोनों को सहला रहा था और बीसों लड़के तमाशा देख रहे थे।
सारे गाँव में उछाह-सा मालूम होता था।
उसी समय मालकिन ने आकर दोनों के माथे चूम लिए।
शब्दार्थ – दो बैलों की कथा
निरापद = सुरक्षित
सहिष्णुता = सहनशीलता
पछाईं = गोईं
पालतू पशुओं की एक नस्ल = जोड़ी
कुलेल (कल्लोल) = क्रीड़ा
विषाद = उदासी
पराकाष्ठा = गण्य
अंतिम सीमा = विग्रह
गणनीय, सम्मानित = पगहिया
अलगाव = पशु बाँधने की रस्सी
गाँव = फुंदेदार रस्सी जो बैल आदि के गले में पहनाई जाती है।
प्रतिवाद = विरोध
टिटकार = मुँह से निकलने वाला टिक-टिक का शब्द
मसलंहत = हितकर
रगेदना = खदेड़ना
मल्लयुद्ध = कुश्ती
साबिका = वास्ता, सरोकार
कांजीहौस = मवेशीखाना, वह बाड़ा जिसमें दूसरे का खेत आदि खाने वाले या लावारिस चौपाये बंद किए जाते हैं और कुछ दंड लेकर छोड़े या नीलाम किए जाते हैं। (काइन हाउस)
पशुओं का झुंड = रेवड़
मतवाला = उन्मत्त
पशुओं के बाँधे जाने की जगह = थान
उछाह = उत्सव, आनंद
अहा = वाह! आश्चर्य या आनंद प्रकट करने का शब्द
छक = बैलगाड़ी का एक प्रकार का ढाँचा या वाहन
बेड़ी = लोहे की जंजीर या पट्टी जो पाँव में बाँधी जाती है
व्रत = नियमपूर्वक किया जाने वाला धार्मिक या नैतिक कार्य
अनुनय = विनती, निवेदन, प्रार्थना
दुलत्ती = पीछे की टाँग से मारा गया लात
चिढ़ = गुस्सा, झुँझलाहट
गुर्राना = गुस्से में आवाज करना, गुस्से से बोला गया स्वर
धुरंधर = महान योद्धा, अनुभवी और ताकतवर व्यक्ति
छुट्टा = बिना बँधा हुआ, स्वतंत्र
बधिया = नपुंसक किए गए बैल
बिजना = पंखा या हाथ से हवा करने का उपकरण
रस्सी तुड़ाना = जोर लगाकर रस्सी तोड़ देना
चरागाह = जानवरों के चरने की खुली जगह
हिकम हिकम = बैल चलाने के लिए बोला जाने वाला पारंपरिक शब्द
खिझाना = चिढ़ाना, परेशान करना
संलग्न = जुड़ा हुआ, संलग्नित
पगहिया = बैल के गले में बाँधी जाने वाली रस्सी
मालिकाना = स्वामी भाव, मालिक का अधिकार
हृष्ट-पुष्ट = तंदुरुस्त, अच्छी कद-काठी वाला
अनायास = बिना कारण या अचानक
प्रहार = चोट करना, हमला
निःसंकोच = बिना झिझक
गौरव = सम्मान, अभिमान
उपेक्षा = अनदेखी, नजरअंदाज करना
प्रतिशोध = बदला लेना
कर्तव्य = जो करना आवश्यक हो
सहिष्णुता = सहन करने की क्षमता
धैर्य = संयम, शांति
कुपात्र = जो योग्य न हो
दया = करुणा
धन्य = पूजनीय, भाग्यशाली
विनम्र = नम्र, झुका हुआ
अन्याय = गलत कार्य
आत्मसम्मान = आत्म-गौरव, अपनी प्रतिष्ठा का बोध
स्वाभिमान = आत्मसम्मान का एक रूप, आत्म-गौरव
संघर्ष = लड़ाई, प्रयास
मूक = बिना बोले, चुप
विवशता = मजबूरी
कर्तव्यपरायणता = कर्तव्य के प्रति निष्ठा
सजीव = जीवित, प्राणवान
करुण = करुणामय, दुखद
अदम्य = जिसे दबाया न जा सके
दृढ़ = मजबूत, अडिग
सहअस्तित्व = साथ-साथ अस्तित्व में रहना
पशु-प्रेम = पशुओं के प्रति प्रेमभाव
संवेदनशीलता = भावनाओं को समझने और महसूस करने की शक्ति
बुद्धिहीन = बिना समझ-बूझ वाला व्यक्ति
परले दरजे का = सबसे अधिक सीमा तक का
निरापद = जो किसी को हानि न पहुँचाए
सहिष्णुता = सहने की शक्ति
पदवी = उपाधि, नाम या उपनाम
अनायास = अचानक, बिना कारण के
धारण = ग्रहण करना
दशा = स्थिति
पराकाष्ठा = चरम सीमा
अनादर = अपमान
दुर्दशा = बुरी हालत
कुसमय = बुरे समय
गण्य = गिना जाने वाला
रीतियों = तरीकों, विधियों
पछाईं जाति = विशेष क्षेत्रीय जाति
चौकस = सतर्क, फुर्तीला
डील = शरीर की बनावट या कद-काठी
मूक-भाषा = बिना बोले आपसी संवाद
विनिमय = अदला-बदली
विग्रह = झगड़ा
विनोद = मज़ाक
धौल-धप्पा = हल्की-फुल्की मार
चेष्टा = प्रयास
नाँद = पशुओं के लिए चारा रखने की जगह
संयोग = संकल्पना, अचानक घटना
पगहिया = रस्सी, जो जानवर के गले में बाँधी जाती है
गराँव = रस्सी का फंदा
गद्गद = अत्यधिक भावुक
प्रेमालिंगन = प्रेम से गले लगाना
अभूतपूर्व = पहले कभी न घटी घटना
अभिनंदन-पत्र = सम्मान या स्वागत का पत्र
समर्थन = समर्थन देना, सहमत होना
प्रतिवाद = विरोध, असहमति
आक्षेप = दोषारोपण
रोब = धौंस या अधिकार जताना
रगड़कर = जोर डालकर, दबाकर
कामचोर = काम से जी चुराने वाला
फीका = स्वादहीन
चिकनाहट = चिकनापन, चिकनाई
चिढ़ाया = व्यंग्य किया, मज़ाक उड़ाया
टिटकार = पुकारने की आवाज
व्यथा = पीड़ा
आहत-सम्मान = अपमानित सम्मान
कसम = शपथ
निर्दयी = दयाहीन
काबू = नियंत्रण
जुआ = हल में लगाने वाला लकड़ी का ढाँचा
मज्जा = ताक़त, शक्ति
धर्म = कर्तव्य
ऐंठकर = क्रोध दबाकर
कुशल = भलाई, सौभाग्य
प्रश्न अभ्यास
प्रश्न 1. कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी क्यों ली जाती होगी?
उत्तर― कांजीहौस में कैद पशुओं की हाजिरी इसलिए ली जाती होगी ताकि यह पता चल सके कि सभी पशु सुरक्षित हैं या नहीं, कोई पशु भागा या मर गया तो नहीं, और उनकी स्थिति की निगरानी बनी रहे। यह एक प्रशासनिक प्रक्रिया का हिस्सा होता है।
प्रश्न 2. छोटी बच्ची को बैलों के प्रति प्रेम क्यों उमड़ आया?
उत्तर― छोटी बच्ची ने बैलों की दीनता, विवशता और सज्जनता को देखा। उनकी आँखों में आँसूअत्यंत दुर्बलविलक्षण करुण दृश्य ने उसके बाल-हृदय
प्रश्न 3. कहानी में बैलों के माध्यम से कौन-कौन से नीति-विषयक मूल्य उभर कर आए हैं?
उत्तर― कहानी में बैलों के माध्यम से त्याग, साहस, स्वामिभक्ति, आत्मसम्मान, अन्याय के विरुद्ध संघर्षनीति-विषयक मूल्यकष्ट सहकर भीअपना आत्मसम्मान
प्रश्न 4. प्रस्तुत कहानी में प्रेमचंद ने गधे की किन स्वभावगत विशेषताओं के आधार पर उसके प्रति रूढ़ अर्थ 'मूर्ख' का प्रयोग न कर किस नए अर्थ की ओर संकेत किया है?
उत्तर― प्रेमचंद ने गधे को धैर्यवान, सहनशील और कर्तव्यपरायणगधा मूर्ख नहीं होतासेवा-भाव, सहिष्णुतापरिश्रमशीलतासकारात्मक छवि
प्रश्न 5. किन घटनाओं से पता चलता है कि हीरा और मोती में गहरी दोस्ती थी?
उत्तर― हीरा और मोती हमेशा साथ रहते थे, साथ खाते और साथ सोते थे। कांजीहौस में बंद रहने के दौरान भी उन्होंने एक-दूसरे का साहसघर लौटने की योजनागहरी मित्रता
प्रश्न 6. 'लेकिन औरत जात पर सींग चलाना मना है, यह भूल जाते हो।' हीरा के इस कथन के माध्यम से स्त्री के प्रति प्रेमचंद के दृष्टिकोण को स्पष्ट कीजिए।
उत्तर― इस कथन के माध्यम से प्रेमचंद ने स्त्री जाति के प्रति संवेदनशीलता और सम्मानपशु भीकरुणा और मर्यादानारी-सम्मान
प्रश्न 7. किसान जीवन वाले समाज में पशु और मनुष्य के आपसी संबंधों को कहानी में किस तरह व्यक्त किया गया है?
उत्तर― कहानी में पशु और मनुष्य के बीच के संबंध को स्नेह, सहयोग और आत्मीयतापरिवार का सदस्यकेवल बैल नहींमालिक के सुख-दुख के साथीकृषि समाजउपयोगितावादी
प्रश्न 8. 'इतना तो हो ही गया कि नौ दस प्राणियों की जान बच गई। वे सब तो आशीर्वाद देंगें' - मोती के इस कथन के आलोक में उसकी विशेषताएँ बताइए।
उत्तर― इस कथन से मोतीदयालुता, संवेदनशीलता और परोपकार भावनादूसरों की जान बचानेबलिदान की भावनाउच्च चरित्र
प्रश्न 9. आशय स्पष्ट कीजिए -
(क) अवश्य ही उनमें कोई ऐसी गुप्त शक्ति थी, जिससे जीवों में श्रेष्ठता का दावा करने वाला मनुष्य वंचित है।
उत्तर― इस कथन का आशय यह है कि हीरा और मोतीसहानुभूति, त्याग, आत्मसम्मानअदृश्य मानवीय शक्तियाँमनुष्यों में नहीं होतींमानवीय गरिमा
(ख) उस एक रोटी से उनकी भूख तो क्या शांत होती; पर दोनों के हदय को मानो भोजन मिल गया।
उत्तर― इस कथन से यह स्पष्ट होता है कि भोजन से अधिक महत्वपूर्णस्नेह और अपनापनभावनात्मक संतोषहीरा और मोती के हृदय
प्रश्न 10. गया ने हीरा-मोती को दोनों बार सूखा भूसा खाने के लिए दिया क्योंकि-
उत्तर― (क) गया पराये बैलों पर अधिक खर्च नहीं करना चाहता था।
(ख) गरीबी के कारण खली आदि खरीदना उसके बस की बात न थी।
(ग) वह हीरा-मोती के व्यवहार से बहुत दुखी था।
(घ) उसे खली आदि सामग्री की जानकारी न थी।
रचना और अभिव्यक्ति
प्रश्न 11. हीरा और मोती ने शोषण के खिलाफ आवाज उठाई लेकिन उसके लिए प्रताड़ना भी सही। हीरा-मोती की इस प्रतिक्रिया पर तर्क सहित अपने विचार प्रकट करें।
उत्तर― हीरा और मोती ने अन्याय और शोषणविरोधकांजीहौस की सज़ास्वाभिमानअधिकारों के लिए संघर्षपशुओं में भी हो सकती हैसाहस, आत्मसम्मान और न्यायप्रियताहर प्राणी के अधिकार
प्रश्न 12. क्या आपको लगता है कि यह कहानी आजादी की लड़ाई की ओर भी संकेत करती है?
उत्तर― हाँ, यह कहानी प्रतीकात्मक रूप सेहीरा और मोतीभारतीय जनताशोषण, अन्याय और दमनआवाज उठाते हैंऔपनिवेशिक शासनउनका प्रतिरोधस्वतंत्रता, आत्मसम्मान और संघर्ष
भाषा-अध्ययन
प्रश्न 13. कहानी में से पाँच ऐसे वाक्य छाँटिए जिनमें निपात का प्रयोग हुआ हो।
1. बस इतना ही
2. फिर भी
3. मोती तो
4. अब तो
5. इतना भी
प्रश्न 14. रचना के आधार पर वाक्य भेद बताइए तथा उपवाक्य छाँटकर उसके भी भेद लिखिए–
(क) दीवार का गिरना था कि अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे।
वाक्य भेद: संयुक्त वाक्य
उपवाक्य:
- दीवार का गिरना था (मुख्य उपवाक्य)
- अधमरे से पड़े हुए सभी जानवर चेत उठे (मुख्य उपवाक्य)
(ख) सहसा एक दाढ़ियल आदमी, जिसकी आँखे लाल थीं और मुद्रा अत्यंत कठोर, आया।
वाक्य भेद: मिश्र वाक्य
उपवाक्य:
- जिसकी आँखे लाल थीं (विशेषण उपवाक्य)
- मुद्रा अत्यंत कठोर (साधारण वाक्यांश)
(ग) हीरा ने कहा- गया के घर से नाहक भागे।
वाक्य भेद: मिश्र वाक्य
उपवाक्य:
- हीरा ने कहा (मुख्य उपवाक्य)
- गया के घर से नाहक भागे (उद्घाटनवाचक उपवाक्य)
(घ) मैं बेचूँगा, तो बिकेंगे।
वाक्य भेद: संयुक्त वाक्य
उपवाक्य:
- मैं बेचूँगा (मुख्य उपवाक्य)
- तो बिकेंगे (मुख्य उपवाक्य)
(ङ) अगर वह मुझे पकड़ता तो मैं बे-मारे न छोड़ता।
वाक्य भेद: मिश्र वाक्य
उपवाक्य:
- अगर वह मुझे पकड़ता (शर्तवाचक उपवाक्य)
- तो मैं बे-मारे न छोड़ता (मुख्य उपवाक्य)
प्रश्न 15. कहानी में प्रयुक्त पाँच मुहावरे छाँटिए और उनका वाक्यों में प्रयोग कीजिए।
1. दाँत खट्टे करना – हीरा ने खेत में इतना अच्छा काम किया कि मालिक के दाँत खट्टे कर दिए।
2. पसीना बहाना – मोती ने सारा दिन खेत में पसीना बहाया।
3. नाक में दम करना – बैलों ने गया की नाक में दम कर दिया।
4. जान पर बन आना – कांजीहौस में हीरा की जान पर बन आई थी।
5. दम मारना – मोती ने दीवार गिराकर दम मारा।
पाठेतर सक्रियता
प्रश्न― पशु-पक्षियों से संबंधित अन्य रचनाएँ ढूँढ़कर पढ़िए और कक्षा में चर्चा कीजिए।
उत्तर― पशु-पक्षियों पर आधारित अनेक रोचक एवं शिक्षाप्रद रचनाएँ हिंदी साहित्य में उपलब्ध हैं। विद्यार्थियों को निम्नलिखित रचनाएँ पढ़ने के लिए प्रेरित किया जा सकता है―
1. पंचतंत्र की कहानियाँ – इनमें पशु-पक्षियों को पात्र बनाकर नैतिक शिक्षा दी गई है।
2. कबीर के दोहे – कुछ दोहों में पक्षियों के माध्यम से गूढ़ संदेश दिए गए हैं।
3. फणीश्वरनाथ 'रेणु' की कहानी 'ठुमरी' – इस कहानी में पशु-पक्षियों के प्रति मानवता का भाव दिखाया गया है।
4. रामधारी सिंह दिनकर की कविता 'कौआ और हंस' – यह कविता पक्षियों के माध्यम से सामाजिक भेदभाव पर कटाक्ष करती है।
5. महादेवी वर्मा की 'गिल्लू' – यह कहानी एक गिलहरी पर आधारित करुणामयी रचना है।
इन रचनाओं को पढ़कर कक्षा में पशु-पक्षियों के प्रति मानवीय दृष्टिकोण, करुणा, और संरक्षण की भावना पर चर्चा की जा सकती है।
आशा है, उपरोक्त जानकारी उपयोगी एवं महत्वपूर्ण होगी।
(I hope the above information will be useful and important. )
Thank you.
R. F. Tembhre
(Teacher)
rfhindi.com
अन्य महत्वपूर्ण जानकारी से संबंधित लिंक्स👇🏻
कक्षा 9 क्षितिज (हिन्दी) के गद्य खण्ड के पाठ, उनके सारांश एवं अभ्यास
1. पाठ 1 'दो बैलों की कथा' पाठ, का सारांश, अभ्यास एवं व्याकरण
2. सम्पूर्ण कहानी- 'दो बैलों की कथा' - प्रेंमचन्द
3. दो बैलों की कथा (कहानी) प्रेंमचन्द
4. पाठ- 2 'ल्हासा की ओर' - यात्रावृत्त - राहुल सांकृत्यायन
5. पाठ- 2 'ल्हासा की ओर' (यात्रा-वृत्तान्त, लेखक- राहुल सांकृत्यायन), पाठ का सारांश, प्रश्नोत्तर, भाषा अध्ययन, रचना और अभिव्यक्ति (कक्षा 9 हिन्दी)
6. पाठ - 3 'उपभोक्तावाद की संस्कृति' (विषय हिन्दी गद्य-खण्ड कक्षा - 9) प्रश्नोत्तर अभ्यास
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8. नाना साहब की पुत्री देवी मैना को भस्म कर दिया गया — चपला देवी, Class 9th Hindi क्षितिज पाठ-5 अभ्यास व प्रश्नोत्तर
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1. हिन्दी के परीक्षापयोगी 40 वैकल्पिक प्रश्न उत्तर सहित कक्षा 9
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